रक्षाबंधन पर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल — जलालाबाद में रामअवध कुशवाहा बने फ़रिश्तारक्षाबंधन का पर्व हमेशा से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक रहा है, लेकिन इस बार जिले में यह पर्व इंसानियत, भाईचारे और हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा उदाहरण बन गया।जलालाबाद कोटिया निवासी अकबर हुसैन की बहू गुलबदन निशा की डिलीवरी के समय अचानक तबीयत गंभीर हो गई। डॉक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन और ब्लड चढ़ाने की सलाह दी। लेकिन समय पर ब्लड मिलना बेहद मुश्किल हो रहा था।ऐसे संकट की घड़ी में कमाल अंसारी (सौहार्द बंधुत्व मंच के सदस्य) ने तुरंत साथी सदस्यों को सूचना दी और मदद की अपील की। तभी समाजसेवी रामअवध कुशवाहा ने बिना किसी धर्म, जात-पात के भेदभाव के, मऊ स्थित शारदा नारायण अस्पताल पहुँचकर तुरंत एक यूनिट रक्तदान किया। उनके साथ कई अन्य लोग भी ब्लड देने को तैयार होकर मौके पर पहुँचे।यह घटना हमें इतिहास के उस प्रसंग की याद दिलाती है, जब चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर मदद की गुहार की थी। हुमायूं ने धर्म और सत्ता की सीमाओं को पार करते हुए बहन का मान रखा और अपनी सेना लेकर रक्षा के लिए निकल पड़े।ठीक उसी तरह, रामअवध कुशवाहा ने न तो धर्म देखा, न जात — बस इंसानियत और भाईचारे की रक्षा की। रक्षाबंधन के पावन दिन पर यह कार्य इस पर्व के असली संदेश को जीवंत कर गया —”इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं, और भाईचारे से बड़ा कोई रिश्ता नहीं।”






