
बूंद-बूंद संरक्षित कर,आओ इसका करें निदान
जल जीवन की धारा है,जल संरक्षण का करें सम्मान।
बूंद-बूंद संरक्षित कर, आओ इसका करें निदान।।
सूख गया है ताल तलैया,नदी झरनों परआफत है।
नहीं सचेते हम मानव,तो पूरे धरा की सासत है।।
मिल बैठकर करें विचार,मिलेगा इसका एक विधान।
बूंद-बूंद संरक्षित कर,आओ इसका करें निदान।।
हाथ मिलाकर पेड़ लगाए,घर-द्वार खलिहानों में,
पुनःबहेगी विह्वल धारा गंगा जमुना के मैदाने में।।
हरा-भरा यह धरा रहेगी,संचित होगा जीवन का वरदान।
बूंद-बूंद संचित कर,आओ इसका करें निदान।।
शहरीकरण-औद्योगिक कचरा, जल को दूषित करता है।
उर्वरक-कीटनाशक रसायन जल में विष फैलता है।।
नदी-नालों को बचाकर इससे,करदे निर्मलवान।।
बूंद-बूंद संरक्षित कर,आओ इसका करें निदान।।
वक्त-वक्त का साया है,वक्त बदलना सीखो।
राजेंद्र जी के संघर्षों की ओर,एक कदम बढ़ाना सीखो।।
ईश्वर,अच्छे लाल,अब्बासी के साथ जल के निर्मल का दो वरदान।।
बूंद-बूंद संरक्षित कर,आओ इसका करें निदान।।
जल जीवन की धारा है जल संरक्षण का करो सम्मान।।।
डॉ जनक कुशवाहा
बरेजी,ग़ाज़ीपुर 233301
